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सरदार पटेल की प्रतिमा का अनावरण, नहीं दिखे बीजेपी के लौहपुरुष

2013 में जब नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री की हैसियत से मूर्ति का शिलान्यास किया था तब आडवाणी वहां मौजूद थे, दोनों ने एक साथ दीपक जलाया था. लेकिन बुधवार को अनावरण के दिन आडवाणी  संसद में सोनिया के साथ दिखे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को आजाद भारत के पहले गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा का अनावरण कर दिया लेकिन इस समारोह में एनडीए की पहली सरकार के पहले गृहमंत्री और लौहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी नहीं दिखे. आडवाणी सोनिया के साथ संसद में दिखे. कई नेताओं के साथ दोनों ने पटेल को श्रद्दासुमन अर्पित किए. भाजपा ने ही आडवाणी को छोटे सरदार और लौहपुरुष का खिताब दिया था. 2013 में जब प्रतिमा का अनावरण हुआ था तब भी आडवाणी वहां मौजूद थे.

'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' के उद्घाटन के अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, मध्य प्रदेश की राज्यपाल और गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल समेत कई बड़े नेता मौजूद थे. लेकिन गुजरात के गांधीनगर से ही सांसद आडवाणी की वहां गैरमौजूदगी पर सवाल खड़े होना लाजिमी है. मोदी-शाह के दौर में आडवाणी बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर दिए गए थे. उसके बाद से सियासी मंचों पर उनकी कम ही उपस्थिति देखी जाती है.

बीजेपी के लौहपुरुष कहे जाने वाले आडवाणी एनडीए की पहली सरकार में गृह मंत्री और फिर उपप्रधानमंत्री भी बने. बीजेपी को खड़ा करने के पीछे अटल-आडवाणी की जोड़ी को पूरा श्रेय जाता है. आजाद भारत में वल्लभभाई पटेल भी पहली कांग्रेस सरकार के गृहमंत्री थे, उन्हें भी उप प्रधानमंत्री का पद सौंपा गया था. जिस तरह सरदार पटेल अपने दृढ़ फैसलों के लिए जाने जाते थे, उसी तरह यह भी माना जाने लगा था कि आडवाणी जो एकबार जो फैसले ले लेते हैं उस पर अटल रहते हैं. भाजपा के लोगों ने पहले उन्हें छोटे सरदार की उपाधि दी, बाद में उन्हें लौहपुरुष भी कहा जाने लगा.

31 अक्टूबर 2013 को नरेंद्र मोदी ने ही सरदार पटेल के जन्मदिवस पर पटेल की मूर्ति का शिलान्यास किया था, तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. आडवाणी का कद तब पार्टी में महत्व रखता था. शिलान्यास के मौके पर दोनों एकसाथ दीपक जला रहे थे. यह वह दौर था जब केंद्र की यूपीए सरकार अपने दिन पूरे कर रही थी. तमाम घपलों और घोटालों के सामने आने से यूपीए सरकार की इमेज खराब हो चुकी थी. बीजेपी ने आक्रामक चुनावी अभियान चलाया और नरेन्द्र मोदी को अपना चेहरा बनाया. इसी के साथ बीजेपी में आडवाणी युग के अवसान और मोदी-शाह युग का उभार शुरू हुआ.

दूसरी ओर, आडवाणी पहले से ही पीएम बनने की तमन्ना दिल में पाले बैठे थे. 2009 के चुनाव प्रचार के दौरान आडवाणी पीएम इन वेटिंग के तौर पर देखे गए लेकिन बीजेपी जीत नहीं सकी और यूपीए की सत्ता में वापसी हुई. 2013 आते-आते संघ से हरी झंडी मिलने के बाद मोदी आगे बढ़ चुके थे और आडवाणी को अपना रास्ता तय करना था. सरकार बनने के बाद उन्हें मार्गदर्शक मंडल में लाया गया. तब से आडवाणी सियासी मंचों पर कम ही दिखते हैं.

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